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क्या सुखद संयोग है, अभी १५ तारीख को ही इसी ब्लॉग पर टीवी चैनल्स पर लेख लिखा था और आज के अखबार में पढ़ा कि ‘राखी का इन्साफ’ और ‘बिग बॉस’ पर कोर्ट ने एक्शन लिया है हालाँकि इसके लिए झाँसी के लक्ष्मण प्रसाद को अपनी जान गवानी पड़ी. लेकिन मेरा मुख्य निशाना कॉमेडी सर्कस/ कॉमेडी चैम्पियन जैसे कार्यक्रम थे जिनमे कि कॉमेडी के नाम पर अश्लीलता व भौंडी हरकतें कि जाती हैं और विशेषकर एक छोटी सी बच्ची के सामने ये सब होता है. इन्ही कार्यक्रमों में कई बार कासिफ खान और शकील सिद्दीकी जैसे पाकिस्तानी कलाकार भी होते है जो कॉमेडी के नाम पर भौंडी व अश्लील हरकते करते हैं और विजेता भी बनते हैं.
खैर, कोर्ट ने तो अपना काम किया है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है क्योंकि कानून एक सीमा के ही अंदर कम करता है, इसीलिए कई बार दोषी सबूतों के अभाव में बरी हो जाते हैं. आपने जो देखा है वो आप जानते तो हैं लेकिन जरूरी नहीं कि आप उसे कोर्ट में साबित भी कर सकें. इसीलिए कई बार सामाजिक आन्दोलन और न्याय की भी आवश्यकता होती है. जेबकतरे का जो न्याय भीड़ करती है, जरूरी नहीं कि कोर्ट भी कर सके. रुचिका गिरहोत्रा खुदकशी मामले में जो कुछ भी न्याय हुआ है वह जनांदोलन और मीडिया की देन थी वरना इतना भी नहीं हुआ होता. कामनवेल्थ घोटाले और ए. राजा के मामले में भी ऐसा ही कुछ हुआ है.
कानून ने तो लिव इन रिलेशनशिप को भी मान्यता दे दी है. लिव इन रिलेशनशिप याने पुरुष और महिला बिना शादी के पति-पत्नी की तरह साथ रह सकते हैं, और अगर सही न लगे तो अलग होकर किसी नए के साथ रह सकते हैं. हमारे बॉलीवुड में भी इसी तरह के कुछ फेमस जंतु हैं जैसे पहले शाहिद-करीना, अब सैफ-करीना, आगे पता नहीं-करीना…, सैफ-रोजा कैटलानो, कंगना रानावत- आदित्य पंचोली, जान-बिपाशा, अमीषा पटेल- विक्रम भट्ट, सलमान-कैटरीना और न जाने क्या-क्या. लेकिन क्या आप इसे सामाजिक तौर पर स्वीकार कर सकते है? क्या आपके मोहल्ले में कोई लिव इन रिलेशनशिप वाला बंदा रह सकता है? रहना तो दूर की बात है, आपके घर के बगल में कोई प्रेमी जोड़ा खड़ा भी हो गया तो आप उसे भगा देंगे कि आपके बच्चों पर इसका प्रभाव न पड़े. सामाजिक बुराइयों पर एक्शन समाज ही ले सकता है. शराब और तम्बाखू के विरुद्ध आन्दोलन समाज ही कर सकता है क्योंकि कानून की के हिसाब से शराब और तम्बाखू वैध है और सरकार तो खुद ही इन्हें बेचती है, इसीलिए शराबबंदी और धूम्रपान के विरोध में जनांदोलन होते हैं.
यहाँ मैं कानून और समाज कि तुलना नहीं करना चाहता, ये फैसला तो जनता को ही करना है लेकिन सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जन चेतना होनी बहुत जरूरी है क्योंकि कई बार मामले कोर्ट के बाहर भी सुलझाने पड़ते हैं. इसलिए जरूरी है कि आप सामाजिक मुद्दों को सुलझाने के लिए कदम उठायें ख़ास तौर पर ऐसे टीवी सीरियल्स जो उल-जुलुल कार्यक्रमों से जनता को मानसिक रूप से बीमार बना रहे हैं और इसके माध्यम बहुत सारे है जिनमे एक यानि कि ब्लॉग्गिंग का प्रयोग मैं भी कर रहा हूँ क्योंकि ब्लॉग्गिंग एक ऐसा सशक्त माध्यम है कि –
“मैं अकेला ही चला था मंजिले जानिब,
लोग जुड़ते गए, कारवाँ बनता गया.”
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