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“गंगा तेरा पानी अमृत, झर-झर बहता जाय,
युग-युग से इस देश की धरती तुझसे जीवन पाय”
कल के दैनिक जागरण अखबार में एक खबर पढ़ी- ‘युकां ने किया गंगा तट शुद्धिकरण’. पढ़ कर बड़ी हंसी आई. कुछ दिन पहले युवा भाजपा नेताओं ने इसी गंगा तट पर शराब और कबाब की पार्टी कर अपना अशुद्धिकरण अभियान चलाया था. बचपन से गंगा तट पर रहता आया हूँ और इस पतित पावनी गंगा मैय्या को सतत बहते देखते आया हूँ. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इसकी पावनता और शुद्धता का जिम्मा कुछ विशेष लोगों ने जिस तरह से संभाल लिया है, उसे देखते हुए तो लगता है कि वो दिन दूर नहीं जब कि गंगा में नहाने का शुल्क भी अदा करना पड़े. गंगा तट पर पार्किंग शुल्क तो पहले से दे ही रहे हैं. तो कुछ विशेष लोगों का गंगा शुद्धिकरण अभियान और गंगा का राजनैतिक उपयोग पेशे खिदमत है.
१७ दिसंबर २००९ को ऋषिकेश के परमार्थ निकेतन में उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने गंगा को उसके उद्गम से लेकर अंतिम छोर तक स्वच्छ करने के संकल्प के साथ रविवार को यहां “स्पर्श गंगा” अभियान की शुरूआत की. उदघाटन समारोह में एक से बढ़ कर एक महान हस्तियाँ मौजूद थी. इस अभियान के लिए फिल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी और अभिनेता विवेक ओबेराय को ब्रांड एम्बेस्डर बनाने की घोषणा की गई. निशंक ने तिब्बती धर्म गुरू दलाई लामा के साथ ही योग गुरू रामदेव से भी इस अभियान में समर्थन मांगा. ये दोनों महान हस्तियां भी यहां गंगा तट पर परमार्थ निकेतन में आयोजित समारोह में उपस्थित थीं. मुख्यमंत्री निशंक ने ईसाई पुजारी, फादर डोमिनिक के साथ ही स्वामी अग्निवेश को भी इस अभियान में आमंत्रित किया था. इस अवसर पर पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और भारतीय जनता पार्टी के कई अन्य नेता भी उपस्थित थे।
यह कार्यक्रम पूरी तरह से राजनैतिक यानी कि भाजपा का कार्यक्रम था क्योंकि इस कार्यक्रम में कांग्रेस या अन्य राजनैतिक दलों से जुड़े लोग उपस्थित नहीं थे. यानी कि अगर गंगा को स्वच्छ रखने की इन लोगों को इतनी चिंता है जिसका कि वे अक्सर ड्रामा करते रहते हैं तो क्यों कांग्रेस या अन्य राजनैतिक दलों से जुड़े लोग इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए. जब मन में सेवा की भावना हो तो कैसा दल और कैसी राजनीति? सामाजिक कार्यों में क्या लोगों को मिल-जुल कर काम नहीं करना चाहिए? ये कैसी समाज सेवा है जो हर राजनैतिक पार्टी अपने बैनर के तले ही करना चाहती है.
इस कार्यक्रम में क्योंकि बड़े-बड़े महान लोग आये थे इसलिए भाषणबाजी होनी तो लाजिमी ही थी. सो बारी-बारी से भाषणों का दौर चला. कार्यक्रम में कई स्कूलों के बच्चों को भी लाया गया था. लंबे-लंबे भाषणों के दौर के बीच बच्चे घंटों भूखे-प्यासे घंटों बिठाकर रखे गए. हालांकि उन्हें लाया इसलिए गया था कि महान लोग तो क्योंकि नाजुक होते हैं अतः ये स्कूली बच्चे ही गंगा तट पर सफाई करेंगे. लेकिन भाषणों के दौर पे दौर चले और गंगा-सफाई अभियान गया तेल लेने.
कार्यक्रम के अंत में सभी महान हस्तियों, चमचों और भीड़ ने अपने-अपने गंदे हाथ गंगा में धोए अर्थात गंगा को स्पर्श कर कृतार्थ किया और इस प्रकार स्पर्श गंगा अभियान की शुभ शुरुआत हुई. हालांकि स्पर्श गंगा का मुझे आज तक मतलब ही समझ नहीं आया है, पर थोडा बहुत जो मैं समझा, वही अल्प ज्ञान आपके बीच बाँट रहा हूँ.
हाल ही में उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री डॉ़ रमेश पोखरियाल निशंक ने स्पर्श गंगा बोर्ड के लिए आवश्यक पदों का सृजन शीघ्र करने कर निर्णय लिया. उन्होंने कहा कि कैबिनेट की अगली बैठक में इसका प्रस्ताव रखा जाएगा. उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए कि बोर्ड के लिए बजट के तहत वित्त वर्ष 2011-12 के लिए 336 लाख रुपये के बजट का प्रस्ताव पेश किया जाए.
यानी कि जब तक सरकार है तब तक काट लो जो काटना है, कल को अगर कांग्रेस सत्ता में आयी तो न तो ये स्पर्श गंगा अभियान बचेगा और न ये बोर्ड क्योंकि तब नए अभियान चलेंगे और नए बोर्ड बनेंगे नेहरु, इंदिरा, राजीव के नाम पर. भई अपनी फसल तो सभी को बोनी और काटनी है. जैसे ही सरकार बदलती है सरकारी कार्यालयों की दीवारों पर महापुरुषों की तस्वीरें भी बदल जाती है. और तो और अब तो स्कूलों के पाठ्यक्रम में भी महापुरुषों के पाठ सरकारों के हिसाब से बदलने लगे हैं. मतलब ये कि ऐसा कोई महापुरुष है ही नहीं जो निर्विवाद रूप से सभी राजनैतिक दलों को राष्ट्रीय स्तर पर पर मान्य हो.
चलो जी आगे बढते हैं. अभी हाल ही में ऋषिकेश से २० किमी दूर शिवपुरी में भाजयुमो दिल्ली प्रदेश का कथित प्रशिक्षण वर्ग तीन दिन (२६-२८ फरवरी) के लिए आयोजित किया गया था जिसमें दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष सहित छः दर्जन संगठन अधिकारी शामिल हुए थे. अब कहने को तो यह दिल्ली नगर निगम चुनाव को लेकर मनन करने के लिये आयोजित किया गया था लेकिन इससे क्षेत्र की शान्ति में खलल हो गया और कांग्रेस को भी मुद्दा मिल गया. प्रशिक्षण वर्ग की पहली ही रात गंगा तट पर जमकर शराब-कबाब पार्टी चली और देर रात तक भौंडे फ़िल्मी गाने बजते रहे जिसकी शिकायत स्थानीय लोगों ने अगले दिन की. अगले दिन गंगा तट पर शराब-सोडे की खाली बोतलें, चिकन-मटन के अवशेष यानी कि हड्डियां और बुझे हुए अलाव की तस्वीरें मीडिया के हाथ लग गईं और सारा मामला उजागर हो गया तो आनन-फानन में इस तीन दिवसीय कार्यक्रम को दो दिन में ही समेट लिया गया.
अब गंगा तट चूंकि अशुद्ध हो गया था तो इसका शुद्धिकरण भी जरूरी था तो इसका बीड़ा उठाया युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने क्योंकि इस पूरी तीर्थनगरी में इस अशुद्धि से सबसे ज्यादा आत्मा उन्हीं की दुखी थी. इस शुद्धिकरण की श्रृंखला में पहले तो भाजपा का पुतला फूंका गया, नारेबाजी की गई, सरकारी धन की फिजूलखर्ची के आरोप लगाए गए, गंगा की अस्मिता की दुहाई दी गई और अब इस कड़ी में ये गंगा शुद्धिकरण के लिए हवन किया गया.
धिक्कार है हमें कि हमें कि हम गंगा शुद्धिकरण के लिए आज तक कुछ नहीं कर पाए. अब अगर भाजपा-कांग्रेस न होती तो ये शुद्धि कैसे होती?
वैसे मैं श्रेय देना चाहूँगा इन राजनैतिक दलों को कि ये हैं तो गंगा शुद्ध है वरना इस तीर्थनगरी और इसके आस-पास के युवा तो आये दिन गंगा के किनारे इस प्रकार की शराब-कबाब मय पार्टियां करते ही रहते हैं और गंगा के किनारे कितने ही ऐसे पिकनिक स्पॉट हैं जहाँ कि इस प्रकार शराब-सोडे की खाली बोतलें और चिकन-मटन की अवशेष हड्डियां गंगा तट की शोभा बढाती मिल जायेंगी. पर क्योंकि वो आम आदमी की अशुद्धि है इसलिए मायने नहीं रखती और उसके लिए गंगा शुद्धिकरण हवन आवश्यक नहीं है. मतलब अशुद्धि के लिए भी आपका राजनैतिक होना जरूरी है और शुद्धि के लिए भी.
अब ये राजनैतिक दल हैं तो गाहे-बगाहे गंगा मय्या की शुद्धि दूध से भी हो जाती है. नेहरु-गांधी खानदान में किसी का जन्म दिन हो तो कांग्रेसी और भाजपा के किसी बड़े नेता का जन्म दिन हो तो भाजपाई कई किलो दूध गंगा में यूं उड़ेल देते है जैसे स्पेन में टमाटर की फसल ज्यादा होने पर लोग टमाटर की होली खेलते हैं. गंगा तट पर बैठे कई भिखारियों को ‘चल हट बे एकतरफ’ कहकर गंगा में दूध उडेलते हुए फोटो खिंचवाने का अलग ही मजा होता है.
जैसे कि खुशवंत सिंह अपने लेख के अंत में कोई चुट्कुला जरूर डालते हैं, वैसे ही मेरे दिमाग में भी कुछ खुराफात सूझ रही है और वो यूं है कि अगर लाल कृष्ण आडवाणी ये गाना गाने लगें कि ‘केसरिया बालम जी पधारो म्हारे देश रे……’ तो कांग्रेसी इस गाने को बैन करने की मांग को संसद में रख सकते हैं कि चूंकि इस गाने में केसरिया शब्द है, अतः ये गीत साम्प्रदायिक है. या कल को राष्ट्रध्वज का केसरिया रंग (भगवा) बदलने की मांग भी की जा सकती है कि ये साम्प्रदायिक रंग है. इसी तरह कभी भाजपा भी राष्ट्रध्वज का हरा रंग हटाने की मांग कर सकती है कि ये पाकिस्तानी मानसिकता का प्रतीक है.
मुझे तो लगता है कि राज कपूर ने अपनी फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ का टाइटल ठीक नहीं रखा था क्योंकि बहता पानी तो कभी मैला हो ही नहीं सकता, हाँ इसके स्वयम-भू ठेकेदार जरूर मैले है और वे चाहे अपनी कितनी ही गंदगी इस गंगा में धो लें, ये गंगा मैली नहीं होने वाली.
अगर किसी फिल्म निर्माता को अपनी फिल्म के लिए फ्री-फंड का टाइटल चाहिए हो तो वो बिना पूछे यहाँ से उठा सकता है- “राम तेरी गंगा के ठेकेदार मैले”.
सुना है कि महेश भट्ट भी जागरण जंक्शन पर ब्लाग्गिंग करते हैं. तो सुन रहे हैं ना भट्ट साहब…………
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