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इंग्लैण्ड में ढेंचू-ढेंचू हो रहा है

अंगार
अंगार
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नासिर भी गधे हैं, वान भी गधे हैं
इंग्लैण्ड में सारे, गधे ही गधे हैं


गधे हँस रहे, आदमी रो रहा है
इंग्लैण्ड में, ढेंचू-ढेंचू हो रहा है


ये गधापंती का आलम, गधों के लिये है
ये नासिर, ये वान जैसे गधों के लिये है


ये इंग्लैण्ड, ये लन्दन गधों के लिये है
ये नासिर, ये वान के रेंकने के लिये है


तू रेंक नासिर, तू रेंक वान डट के
तुम दोनों लोटो, गंदगी में डट के


मैं इन गर्दभों को अब हांकना चाहता हूं
सचिन के बल्ले से इनको ठोंकना चाहता हूं


घोड़ों को मिलती नहीं, जीत की घास देखो
गधे खा रहे जीत का, च्यवनप्राश देखो


यहाँ भारत के घोड़ों की, कहां कब बनी है
ये इंग्लैण्ड की जमीं, गधों के लिये ही बनी है


जो कमेंट्री में बक दे, वो नासिर गधा है
जो पीछे से बोले, वो वान महा गधा है


जो टीवी पे रेंके, वो नासिर गधा है
जो ट्विटर पे चीखे, वो वान गधा है


मैं क्या बक गया हूं, ये क्या कह गया हूं
नशे में नहीं, होश में कह गया हूं


मुझे तुम न रोको, बहुत सह गया हूँ,
मुझे माफ करना, जो गलत कह गया हूँ|

नोट- यह कविता प्रसिद्द हास्य कवि श्रद्धेय श्री ओम प्रकाश ‘आदित्य’ जी की कविता ‘इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं’ पर आधारित है|

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