Menu
blogid : 3502 postid : 1082

नेकी कर और कुँए में डाल

अंगार
अंगार
  • 84 Posts
  • 1564 Comments

अंगारचंद ने पिछले कई दिनों से जेजे अर्थात जागरण जंक्शन की तरफ जाना काफी कम कर दिया था| बरसाती मेंढकों की तरह उग आये लेखकों की भीड़ में अंगारचंद की अपनी पहचान गुम सी होने लगी थी| अंगारचंद कोई बहुत बड़ा लेखक तो नहीं पर अगर कुछ लेखक अंगारचंद से ऊपर होंगे तो शायद कुछ तो नीचे भी होंगे, ऐसा अंगारचंद को लगता है| भले ही अंगारचंद में अद्वितीय लेखन प्रतिभा न हो पर उसने अपने लेखों के माध्यम से सामाजिक हित में कुछ न कुछ सार्थक सन्देश देने की हमेशा ही कोशिश की है| लेकिन इस मंच पर दो दूनी चार और चार दूनी आठ की बढ़ती निरर्थक परंपरा के चलते अंगारचंद को लगने लगा है कि इस प्रतिस्पर्धा में केवल एक ही चीज हार सकती है और वो है सार्थक लेखन| इसलिए अंगारचंद ने इस जंक्शन पर घूमना कम कर दिया है, कभी कदम इस ओर उठते हैं तो सिर्फ कुछ सम्माननीय साथी लेखकों की मित्रता के नाते|

 

अभी कल की ही बात है, फेसबुक पर भ्रमण करते-२ अचानक जेजे पर किसी लफड़े की बू आई तो अंगारचंद ने जेजे पर जाकर हालात का जायजा लिया और यह जानकर अत्यंत दुःखी  हुआ कि कई लेखकों के सम्माननीय और इस मंच के वरिष्ठ लेखक श्री रविन्द्रनाथ शाही जी को इस कदर ठेस पहुँची कि उन्हें अपनी व्यथा लेख के माध्यम से प्रकट करनी पड़ी| शाही जी जैसे विनोदी स्वभाव के व्यक्ति की इस प्रतिक्रिया का मतलब साफ़ है कि उन्हें बहुत ज्यादा ठेस पहुंचाई गई है, चाहे वो जाने में हो या अनजाने में| जेजे के पुराने लेखकों और पाठकों में से शायद ही कोई होगा जो शाही जी की सुधी लेखन प्रतिभा का प्रशंसक न हो| शाही जी की इस प्रतिक्रिया का कारण अंगारचंद साफ़ समझ और महसूस कर सकता है क्योंकि इस मंच पर जो भी लेखक सार्थक लेखन कर रहे हैं वे अपने व्यस्ततम समय से भी समय निकालकर कैसे इस निस्वार्थ लेखन के कार्य को अंजाम दे रहा है, सिर्फ वही जानता है| उस पर भी उसकी रचना कबाड के ढेर में दबा दी जाय तो ठेस पहुंचना तो स्वाभाविक ही है|

 

अंगारचंद का अपना विचार है कि जेजे को स्तरीय लेखन और लेखकों की कोई खास परवाह नहीं है| इसका कारण भी स्पष्ट है कि इस मंच पर बरसाती कुकुरमुत्तों की भाँती रोज ही कितने ही तथाकथित लेखक जन्म ले रहे हैं| कोई क्या लिख रहा है, कोई पढ़ रहा है या नहीं, इससे किसी को कोई मतलब नहीं है, बस दो के चार और चार के आठ करने में ही जनता व्यस्त है, और जेजे की साईट भी दिनों-दिन लोकप्रिय हो रही है| लोग एक-दूसरे से उलझ रहे है, एक-दूसरे को अभद्र कमेन्ट कर रहे हैं तो इससे किसी को क्या फर्क पड रहा है, मंच तो दिनों-दिन लोकप्रिय हो रहा है| इसका जिम्मेदार कौन है?

 

पिछले दिनों अंगारचंद ने रा-वन फिल्म पर एक समीक्षा लिखी थी| इस पर किसी समथिंग मालपानी नाम के एक शख्श ने जो कि शायद अपनी माता का अत्यंत सम्मान करता होगा, अपनी माता के नाम के आगे कुछ अलंकार लगाकर प्रतिक्रिया की| शायद कुछ लोगों ने उसे पढ़ा भी होगा| लेकिन पता नहीं जेजे ने ब्लॉगर ऑफ द वीक, चर्चित, पठित, टॉप ब्लॉग्स आदि से फुर्सत पाकर इसे देखा या नहीं| मजबूर होकर अंगारचंद को स्वयं ही इस मंच से बाहर जाकर उस मालपानी के घर में घुसकर उससे निपटना पड़ा और उसकी माता का सम्मान करना पडा और उसे बताना पडा कि आग (अंगार) और भाईसाहब दोनों से पंगा लेना कितना घातक होता है|| इस मंच पर कोई भी किसी को गाली देने की स्वतंत्रता रखता है, ये बड़ी जोरदार बात है और इसका अनुभव अंगारचंद को पहले भी कई बार हो चुका है|

 

अंगारचंद जेजे की इन नीतियों का खुलासा पहले भी अपने लेख ‘बुरा मानो या भला’ में कर चुका है और फिर स्पष्ट कर देना चाहता है, भले किसी को इससे कोई फर्क पड़े या न पड़े | जेजे को फ्री-फंड में दिमाग खपाने वाले बंदे बिना मांगे मिल रहे हैं तो वो उन्हें कौन सी दिक्कत है| एक सधी-सधाई स्ट्रेटेजी के तहत जेजे नए मुर्गे तलाशता है और सबसे पहला चुग्गा फेंकता है ‘मोस्ट व्यूड ब्लोगर ऑफ द वीक’ का| सिर्फ २-३ पोस्ट लिखकर ही एक चीकना पात इस खिताब पा लेता है (एक-बार से ज्यादा चुने हुए अपवाद हैं)| अब जब आदमी इस तथाकथित महान खिताब को पा लेता है तो मानवीय गुणों के वशीभूत होकर वह खुद को एक महान लेखक समझ बैठता है हो फिर कम से कम पच्चीस लेख तो इसी गलतफहमी में आकर लिख बैठता है| फिर उसकी नजर पड़ती है ज्यादा पठित, ज्यादा चर्चित और अधिमूल्यित कैटेगरी पर, बस फिर वो महान लेखक इस कैटेगरी में घुसने की होड में उसी प्रकार की हरकतें करने लगता है जैसे कि एक भुट्टा भूने जाते समय भडभड़ाता है|

 

अंगारचंद का तो सुझाव है कि जैसे ही कोई नया ब्लॉगर जेजे पर ज्वाइन करता है उसे शाही जी की रचना ‘टॉप ब्लॉगर’ इंस्ट्रक्शन मैनुअल के तौर पर पढ़ने को देनी चाहिये जिससे कि वो बकरा न बन पाए| वरना नया-२ ब्लॉगर अपनी तरफ से तो बड़ी सफाई से काम करता है पर उसे ये एहसास नहीं होता कि यहाँ पर एक से बढ़के एक खुर्रांट ब्लॉगराचार्य उसकी सारी हरकतों पर नजर रखे हुए हैं| अंगारचंद ने बहुत कोशिश की कि वह भी अपनी छाती पर कुछ तमगे लटकाकर टॉप पे लटक जाय पर तमाम कोशिशों के बावजूद ३५-४० रचनाओं पर भी कुल मिलाकर इतने तमगे नहीं लटक पाया जितने कि कुछ महान लेखक एक ही रचना पर खुद ही टाँक लेते है|

 

वैसे ये प्रतिक्रियाओं का खेल है बड़ा मजेदार| कोई एक करे तो आप उसका जवाब तीन किश्तों में भी दे सकते हो| इस प्रकार आपको वास्तविक कमेन्ट तो एक मिलता है पर कम्प्यूटर गिनता है चार, और खुदान्खास्ता कोई पंगे बाज कमेन्ट कर दे तो तुम भी उसके उंगली करते रहो और दो के चार, चार के आठ,……करते रहो और बल्ले-२ करते रहो….

 

वैसे कभी-२ अपवाद भी हो जाते हैं, अर्थात कोई रचना ही ऐसी महान होती है जिन पर लेखक को खुद कमेन्ट करने की जरूरत ही नहीं होती बल्कि लोग खुद ही ताबडतोड कमेन्ट कर देते हैं| पिछले वर्ष एक महान (?) रचना जो कि बाबा रामदेव पर लिखी गई थी, पर लेखक को इतनी गालियां पड़ीं कि उन्हें अपना एक भी कमेन्ट करने की जरूरत ही नहीं हुई और वो रचना साल की सर्वाधिक चर्चित, पठित और टॉप रचनाओं में थी| इस महान उपलब्धि का पैमाना क्या था, और वो कौन सी किताब के टोटके थे, अंगारचंद आज तक समझ नहीं पाया|

 

खैर, ये सब तो चलता ही रहेगा| कोई आये या जाए, रहे न रहे, दुनिया रुकती नहीं, चलती ही रहती है, और यही इस जिंदगी का फलसफा है| इसलिए अंगारचंद का सन्देश तो यही है कि आप अपना काम करते रहो, आप लिखते रहो, आप दाने बिखेरते रहो ताकि कल कबूतरों को शिकायत न रहे| वैसे तो अंगारचंद खुद को इस काबिल नहीं समझता कि शाही जी को सलाह दे सके पर फिर भी निवेदन करना चाहता है कि आप जैसे लेखकों से इस मंच की रौनक है, आपके बहुत से मुरीद भी यहाँ पर हैं, इसलिए आप जनहित में फैसला लें, व्यक्तिगत तौर पर नहीं|

 

अंगारचंद जेजे को भी सलाह देना चाहता है कि नए लेखकों को प्रोत्साहित करने के साथ-२ अपने उन पुराने, सम्मानित और सार्थक लेखन के माध्यम से इस मंच की गरिमा को बढाने वाले लेखकों के सम्मान का भी ध्यान रखें और उन्हें इस मंच से पलायन करने से रोकने के लिए यथोचित कदम उठायें| कृपया लेखों का मूल्यांकन किसी भी कैटेगरी में गुणवत्ता के आधार पर करें न कि सिर्फ नए लेखकों को चुग्गा डालने के लिए| साथ ही प्रतिक्रियाओं पर भी नजर रखें जिससे कि मंच की गरिमा बनी रहे|

 

चलते-२ चार लाइनें आदतन पेश हैं-

 

‘तेरी बेरूखी का सबब पता है लेकिन,

महफ़िल से जाने की इजाजत नहीं है,

कितनी भी उंगली कर ले कोई,

यूं खफा हो जाना तेरी आदत नहीं है’

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to sinseraCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh