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कम पढ़ा-लिखा होने के नाते मुझे ज्यादा तो नहीं पता पर सुना है कि अंग्रेजी में स्पाइनलेस कोई बड़ी गाली होती है| एक डरपोक नागरिक होने के नाते मैं कोई गाली तो नहीं दे सकता पर स्पाइनलेस की जगह मैं केंचुए शब्द इस्तेमाल करूँगा क्योंकि केंचुओं की भी स्पाइन नहीं होती|
समझ नहीं आता कि कहाँ से शुरू करूं| आज अन्गारचंद की आड नहीं लूँगा| चलिए रेल बजट से ही शुरू करता हूँ| आज रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने सदन में रेल बजट पेश किया| इतने सालों से से वही घिसे-पिटे और राजनैतिक लोलुपता से भरे बजट देखते-देखते सोच इस कदर सेचुरेट हो गई थी कि ऐसे बजट की उम्मीद ही नहीं की थी| पहली बार लगा कि कोई आदमी जिसकी शैक्षिक योग्यता एम बी ए है तो वो इसके काबिल है, वरना कितने ही कहने को पढ़े लिखे लोगों को गधे की तरह आचरण करते देखा है| लेकिन दिन भर रेल बजट की चर्चा तारीफ़ के बजाय धीरे-२ शाम तक दिनेश त्रिवेदी को रेल मंत्री पद से हटाने तक पहुँच गई है| फ्री फंड के सरकारी वाहनों का उपयोग और मुफ्त की यात्राएं करने वाले केंचुए रेल किराया बढ़ने पर यूं हल्ला मचा रहे हैं कि मानो सबसे ज्यादा नुक्सान इन्हीं को हुआ हो| पेट्रोल के दाम प्रतिवर्ष कितने भी गुना चाहे क्यों न बढे हों, इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा, पर रेल के किराए दस साल बाद मात्र कुछ पैसे बढ़ गए तो इन केंचुओं के पेट में दर्द होने लगा| पक्ष के हों या विपक्ष के हों, किसी केंचुए में इतनी हिम्मत नहीं है कि दिनेश त्रिवेदी के साथ खड़ा हो सके|
इस देश का दुर्भाग्य ही है कि पश्चिम बंगाल में एक बिगडैल किस्म की ऐसी स्त्री मुख्यमंत्री बन गई है जो हमेशा से ही सरकार के पिलर हिलाने का ही काम करती रही है और स्थायित्व के एवज में रेल-मंत्री का पद लेती रही है| इस स्त्री को देश के नाम पर पश्चिम बंगाल ही नजर आता है और रेल-मंत्री के पद पर रहते हुए इसने उसी देश की ही हमेशा बात की है, बाकी देश गया भाड में| सच कहता हूँ कि अगर मेरे बस में होता तो सदन में हवाई चप्पल पहन कर देश की जनता को बेवकूफ बनाने वालों को सदन में घुसने ही न देता| ऐसा ही कुछ सौदा सरकार बिहार के रेल मंत्रियों से भी करती रही है ताकि उसके पिलर हिलते न रहें| ये बात और है कि इन भाड़े के रेल मंत्रियों ने न तो बिहार का ही भला किया, न ही पश्चिम बंगाल का और न ही देश का| रेल मंत्री कोटा पद बन गया लेकिन केंचुओं के बस में कभी कुछ भी नहीं रहा| ये इस देश का दुर्भाग्य ही है कि चंद सीटें जीतने वाले कुछ घोंघे केंचुओं को हमेशा साध लेते हैं| ऐसा ही एक घोंघा आजकल इस देश की विमानन सेवा को संभाल रहा है और केंचुए हमेशा की तरह आज भी मजबूर हैं|
ये बात समझ में नहीं आई कि मंत्री सरकार का प्रतिनिधि होता है या किसी पार्टी का| मेरे विचार से तो दिनेश त्रिवेदी मनमोहन सरकार का रेल मंत्री है और उसके सभी कार्यों के प्रति सरकार जवाबदेह होनी चाहिए लेकिन हो क्या रहा है, रेल मंत्री पश्चिम बंगाल से नियंत्रित हो रहा है, बल्कि नियंत्रित भी नहीं हो पा रहा है| प्रधानमंत्री अपने रेल मंत्री के प्रति जवाब देह नहीं है? अब सुना है कि दिनेश त्रिवेदी को हटाने के लिए तिनके ने केंचुए को धमकी दी है|
सिक्ख शब्द सुनते की मुझे गुरु गोविन्द सिंह जी का नाम ध्यान में आता है जिन्होंने सिखों को आत्मसम्मान और अस्त्र-शस्त्र चलाना सिखाया। सिखों को अपने धर्म, जन्मभूमि और स्वयं अपनी रक्षा करने के लिए संकल्पबद्ध किया और उन्हें मानवता का पाठ पढाया। उनका नारा था- ‘सत् श्री अकाल’- सत्य ही ईश्वर है’। लेकिन जो अपने धर्म, जन्मभूमि और स्वयं अपनी रक्षा करने के लिए संकल्पबद्ध न हो, जो ‘सत् श्री अकाल’का मतलब ही न जानता हो, जो विदेशियों का गुलाम हो गया हो वो सिक्ख कैसा| जो केंचुआ हो वो सिक्ख कैसा|
आजकल टी वी पर कुछ केंचुओं को बुलाकर बहस का आयोजन किया जाता है| इन केंचुओं का एकमात्र उद्देश्य होता है प्रतिद्वंद्वी पार्टी के केंचुओं को कुछ भी न बोलने देना, जैसा कि ये सदन में भी करते हैं, देश की इन्हें न तो कभी परवाह होती है न ही देशवासियों की| इन केंचुओं से भी बड़े होते हैं वो टीवी रिपोर्टर जो कि इन केंचुओं से ज्यादा बोलते हैं और एक समयबद्ध सीमा के अंदर हमेशा अपनी ही टांग सबसे ऊपर रखते हैं| बहस का निष्कर्ष क्या होता है ये कभी पता नहीं चल पाता लेकिन इस बहस के विजेता हमेशा ही रवीश या अभिज्ञान ही होते हैं|
बरसात में कच्ची जमीन से असंख्य केंचुए निकलकर रेंगने लगते है तो लगता है कि मानो केंचुए इस धरती पर राज कर लेंगे| लेकिन बढ़ती गर्मी के साथ-२ केंचुए जमीन में घुसने लगते हैं या धूप से सूख जाते हैं| लगता है कि केंचुए समाप्त हो गए, लेकिन फिर बरसात आती है और फिर केंचुए निकलकर धरती पर रेंगने लगते हैं| ये क्रम यूं ही चलता आया है और लगता है यूं ही चलता रहेगा| क्या वाकई यूं ही चलता रहेगा? क्या इस घर में हमेशा पांच सौ बावन केंचुए रहेंगे या किसी केंचुए की स्पाइन निकलेगी और ये मिथक टूटेगा?
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