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बिखरे हुए लम्हों को समेट लो

अंगार
अंगार
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लगता है मानो अभी, 

कल की ही बात है,

बस क्षण भर को झपकी सी आई थी,

सपनों की दुनिया में,

इस कदर खोए कि,

सदियाँ गुजर गई,

और दोस्त बिछड गए

 

बिखरे हुए लम्हों को,

समेट लो जितना समेट सकते हो,

कुछ अपनी कह लो,

कुछ हमारी सुन लो,

वरना ये वक्त है,

मुट्ठी से रेत की मानिंद निकल जाएगा

और तुम बस झाड़ते रह जाओगे,

हाथ में चिपके हुए कुछ वक्त के कण

 

आज फिर कुछ सुनहरी यादें,

तुम्हारे दिल के दरवाजे पर खटखटायेंगी,

अपने दिल के दरवाजे खुले रखना,

हंसकर उनका स्वागत करना,

तुम्हें मुस्कराहट भेजी है,

किसी ने जमाने भर की 

 

ता उम्र परवाह करते रहे,

जमाने भर की,

सदियाँ बिताई हैं तुमने,

परदों में रहकर,

अब निकलो भी खुद के दायरे से बाहर,

और देखो कि,

हम तुम्हें कितना चाहते हैं

नोट- ये कविता नहीं भावनाएं हैं|

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