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आरक्षण व्यवस्था को लेकर देश में जो असंतोष और भेद-भाव व्याप्त है उसके लिए न केवल राजनीति और नेता बल्कि स्वयं दलित भी बराबर के जिम्मेदार हैं| यदि समय के साथ-२ ये आरक्षण व्यवस्था समाप्त हो गई होती तो शायद दलितों और सवर्णों के बीच कोई भेद कर पाना भी संभव नहीं हो पाता| जहां तक मेरा व्यक्तिगत अनुभव है एवं मेरा जो सामाजिक दायरा है, उसमें कोई भी किसी की जात नहीं पूछता और न ही कोई भेद-भाव रखता है| बहुत से दलित जो शिक्षित हो गए हैं एवं आर्थिक रूप से भी संपन्न हो गए हैं, स्वयं नहीं चाहते कि उनकी अलग से पहचान हो या किसी को पता चले कि वे दलित हैं| एक आम आदमी इस बात की पहचान करने के लिए कि कौन एस सी/एस टी या ओबीसी है, जातियों की कोई लिस्ट लेकर नहीं घूमता, लेकिन आरक्षण के चलते आसानी से उसे दलितों की पहचान हो जाती है|
दलितों में भी दो प्रकार के वर्ग हैं| एक वर्ग में वे दलित है जो अब अपनी शैक्षिक योग्यता के आधार पर सामान्य वर्ग के बराबर ही सफलता प्राप्त कर रहे हैं| इन्हें न तो अब आरक्षण की आवश्यकता महसूस होती है और न ही वे अपनी दलित वर्ग की पहचान को सामने लाना चाहते हैं| इस प्रकार के दलित अपनी नौकरी एवं अपने कार्य के प्रति इमानदार भी हैं| वहीं दूसरी और दलितों का ऐसा वर्ग भी है जो सिर्फ आरक्षण के आधार पर ही नौकरी या प्रमोशन पाना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है| इस प्रकार के लोग न तो अपने कार्य के प्रति इमानदार हैं और न ही वे अपना स्तर सुधारना चाहते है|
आरक्षण को लेकर दलील दी जाती है कि हजारों वर्षों तक दलितों के साथ अन्याय हुआ है| अब कोई ये भी बताये कि उन हजारो वर्ष पुराने अन्याय की सजा आज उन सवर्णों को क्यों मिले जिन्होंने कोई अन्याय नहीं किया है| दादा-पडदादा के किये की सजा कोई क्यों भुगते? ये तो वही बात हुई कि तूने मुझे कई साल पहले गाली दी थी, तूने नहीं दी तो तेरे दादा ने दी होगी, दादा ने भी नहीं तो पडदादा ने दी होगी पर दी जरूर होगी|
मैं यकीन से कह सकता हूँ कि यदि आज ये आरक्षण व्यवस्था समाप्त हो जाय तो समाज से न केवल ये वर्ग भेद की विसंगति दूर हो जायगी बल्कि लोग अपने कार्य में मेहनत कर सफलता प्राप्त करने की और प्रेरित होंगे और देश सामाजिक-आर्थिक आधार पर सुदृढ़ भी होगा| जो समय बीत गया वो बीत गया, अब ऐसा नहीं है बल्कि ऐसा माहौल बनाया जा रहा है| देश को सामाजिक रूप से सुदृढ़ बनाना है तो देश की जनता को आर्थिक आधार पर संरक्षण दिया जाय न की जाति के आधार पर और शिक्षित किया जाय| अनिश्चित काल तक चलने वाले इस आरक्षण रूपी पट्टे से न तो देश का भला होगा और न ही जनता का|
अभी हाल ही में चीन की खेलों में बढ़ती हैसियत के ऊपर एक विश्लेषण पढ़ा था| चीन के लोगों ने अपनी मेहनत से न केवल देश की आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ किया बल्कि इस आर्थिक सुदृढिकरण के कारण वहां चीनियों की ब्रीड में भी सुधार हुआ है| जो चीन कभी छोटे कद के लोगों की वजह से पहचाना जाता था, वहां अब लम्बे कद के हृष्ट-पुष्ट लोग पैदा हो रहे हैं जो अपनी मेहनत से सफलता प्राप्त कर रहे हैं और अमेरिका जैसी महाशक्ति को चुनौती दे रहे हैं| वहीं दूसरी और हमारा देश इस आधुनिक जमाने में भी आरक्षण जैसी सड़ी-गली व्यवस्था को विकसित करने में मेहनत कर रहा है जिसके परिणामस्वरूप कमजोर और कामचोर किस्म की ब्रीड विकसित हो रही है और देश पतन की और अग्रसर हो रहा है|
मानव जाति प्रकृति का एक हिस्सा है और प्रकृति के लिए डार्विन की थ्योरी – “Survival of fittest” एक सार्वभौमिक सत्य है| …..और यकीन मानिए कि आरक्षण से कभी भी कोई fittest नहीं हो सकता बल्कि अंततः उसका पतन हो जायगा|
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