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बलात्कार पीड़ित की पहचान छुपाएं क्यों?

अंगार
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भारत सरकार ने दिल्ली सामूहिक बलात्कार पीडिता युवती की एवं उसके परिवार की पहचान गोपनीय रखने की पूरी कोशिश की| यहाँ तक की पीडिता का दाह-संस्कार भी दबे-छुपे तरीके से किया गया| हो सकता है कि पीडिता का परिवार भी शायद यही चाहता हो| लेकिन पीडिता की तस्वीरें और नाम फेसबुक जैसी सोशियल साइट्स और अखबारों के माध्यम से सार्वजनिक हो ही गए| हालांकि पीडिता की तस्वीरें और नाम सत्य हैं या नहीं, इस बारे में कहा नहीं जा सकता| यहाँ तक कि देहरादून स्थित उस संस्थान, जहां से पीडिता ने चार वर्षीय फिजियोथेरेपी का कोर्स किया है, ने भी समाचार पत्रों के माध्यम से उसकी पहचान लगभग सार्वजनिक कर ही दी है| इस संस्थान ने यह भी कहा है कि युवती की पढ़ाई हेतु ली गई फीस भी उसके घरवालों को वापस कर दी जायगी|


लेकिन सरकार या पीडिता युवती के परिवार की पहचान गोपनीय रखने की कोशिशों के पीछे कारण क्या हैं? यही न कि युवती और उसके परिवार की बदनामी होगी, लड़की की शादी में परेशानी आयेगी आदि-आदि? यानी कि हर तरफ से पीड़ित ही शर्मिंदगी या परेशानी उठाएगा, बलात्कारी नहीं| शायद बलात्कार या छेड़-छाड के अधिकतर मामलों में हमारे समाज की मानसिकता यही है| सरकार में शामिल बुद्धिजीवियों की मानसिकता भी शायद यही रही होगी| लेकिन ऐसी सोच क्यों है? बलात्कार को पीडिता के साथ हुई एक दुर्घटना मात्र की तरह क्यों नहीं समझा जाता? हैरत की बात है कि हमारे समाज में जहां विधवा विवाह स्वीकार होने लगे हैं, लोग तलाकशुदा औरत से भी शादी कर रहे हैं, तब बलात्कार पीड़ित स्त्री को अपनाने में हिचक क्यों है? जहां विधवा या तलाकशुदा महिला के पर पुरुष से संबंध स्वेच्छा से बनाए गए होते हैं वहीं दूसरी ओर बलात्कार पीड़ित के साथ तो संबंध उसकी इच्छा के विरुद्ध जबरन बनाए गए होते हैं?


बलात्कार या छेड़-छाड के मामलों में हमारे समाज की यही गलत अवधारणा ही इस दिनोंदिन बढ़ती समस्या के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार है| इस गलत मानसिकता की वजह से ही बलात्कार या छेड़-छाड के अधिकाँश मामले सार्वजनिक नहीं हो पाते और दोषियों को सजा नहीं मिल पाती है| यह तथ्य दीगर है कि बलात्कार और छेड़-छाड की कई घटनाएं घरों में, रिश्तेदारों, पड़ोसियों या करीबी परिचितों द्वारा होती हैं पर इसी पीड़ित की बदनामी वाली मानसिकता की वजह से इस तरह के अधिकांशतः मामले सामने नहीं आ पाते| कई मामलों में तो अपराधी पीड़ित का फोटो या वीडियो बनाकर उसे निरंतर ब्लैकमेल करता रहता है| इसका परिणाम यही होता है कि बलात्कारी या छेड़छाड़ करने वाला और निर्भय होकर लगातार पीड़ित का शोषण करता रहता है| यानी कि जिस जुर्म की सजा पहली बार में ही अपराधी को मिल जानी चाहिए, वही जुर्म बार-बार होता रहता है|


क्यों हम अपने समाज की इस मानसिकता को बदल नहीं पा रहे? क्यों पीड़ित ही समाज की नजरों में बदनाम हो? क्यों हमारा समाज अपनी मानसिकता को इस तरह नहीं बदल सकता कि पीड़ित के साथ सहानुभूति हो और दोषी को सार्वजनिक रूप से बदनाम किया जाय और उसे दंड दिया जाय|


अब जरा कल्पना कीजिये उस समाज की जहां पीड़ित और उसके घर वालों के मन से यह भय समाप्त हो जाय कि उनकी बदनामी होगी और वे निर्भय होकर सबके सामने बता सकें कि उनके साथ फलां व्यक्ति ने दुराचार किया है| यकीन मानिए, जिस दिन हमारा समाज इस कुप्रथा (मानसिकता) को सकारात्मक रूप में उलट देगा, दुराचार की घटनाओं में बहुत हद तक कमी आ जायगी| जिस दिन पीड़ित युवतियां बदनामी का भय छोड़कर अपने घर वालों और समाज के सामने निर्भय होकर यह कह सकेंगी कि फलां व्यक्ति ने उसके साथ दुराचार किया है या उसका अश्लील फोटो अथवा वीडियो बना लिया है, और समाज उस दुराचारी को सार्वजनिक रूप से बदनाम कर उसका सामाजिक बहिष्कार करेगा, न केवल उस दुराचार की पुनरावृत्ति पर रोक लगेगी बल्कि कुत्सित विचार वाले लोगों बीच यह सन्देश भी जाएगा कि जीवनभर उन्हें इस कुकृत्य के लिए शर्मिंदगी उठानी होगी|


इस दिल्ली सामूहिक बलात्कार वाले मामले को ही लें| इस केस में कैसे हर तरफ यही सन्देश प्रसारित हुआ है कि पीड़ित युवती बहादुर थी, उसके जज्बे को सबने सलाम किया और उसके घर वालों की हर तरह से मदद करने के लिए सरकार और पूरा देश सामने आया| वहीं दूसरी ओर अपराधियों पर हर कोई थू-थू कर रहा है और उन्हें नपुंसक बनाने से लेकर अंग-भंग और मौत की सजा तक की मांग कर रहा है| यहाँ तक कि सरकार और समाज के प्रत्येक वर्ग में बैठे बुद्धिजीवियों में भी अपराधियों को रासायनिक तरीके से नपुंसक बनाने पर चर्चा चल रही है| सरकार इन आरोपियों का डाटा बेस वेबसाईट पर अपलोड कर उसे सबके सामने सार्वजनिक करने की भी तैयारी कर रही है| आज ही समाचारों में पढ़ा कि आरोपी राम सिंह और मुकेश के घर वालों का उसके गाँव ने सामाजिक बहिष्कार कर दिया है और वे भी अपने लड़कों की करतूत पर शर्मिंदा हैं| इस तरह तरह का नजरिया और मानसिकता सरकार और समाज बलात्कार के प्रत्येक मामले में क्यों नहीं अपनाता? सरकार इस मामले को ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ श्रेणी में मान रही है, वाकई यह केस ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ है| लेकिन उन मामलों का क्या जहां छह माह या साल भर की बच्ची से बलात्कार और हत्या होती है? जहां विक्टिम इस लायक ही नहीं होता कि उसे यह महसूस भी हो सके कि उसके साथ क्या हुआ और किसने किया| क्या ऐसे मामले ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ नहीं है, बल्कि ये तो उससे भी कहीं जघन्य और वीभत्स श्रेणी के अपराध है|


तो क्या सरकार को बलात्कार का हर मामला इसी तरह से नहीं लेना चाहिए और आगे आकर समाज की इस गलत मानसिकता का तोड़ने का बीड़ा नहीं उठाना चाहिए जहां पीड़ित युवती और उसका परिवार बदनामी के भय से चुप बैठने की बजाय निडर होकर समाज के सामने आएं और अपराधी की पहचान सार्वजानिक करें| सरकार को चाहिए कि कि वो हर बलात्कार पीड़ित और उसके परिवार को इस तरह के मामले सार्वजनिक करने के लिए प्रेरित करे, पीड़ित की सुरक्षा, कानूनी सहायता और पुनर्वास की जिम्मेदारी ले| साथ ही अपराधी की पहचान सार्वजनिक कर इस तरह की सजा दे कि वह जीवन भर अपने कुकृत्य के लिए पछताता रहे|


क्या ये सोच, ये मानसिकता बदलेगी?

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