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कहाँ है राजकमल उर्फ कांतिलाल गोडबोले

अंगार
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बहुत दिन हुए इस मंच पर राजकमल उर्फ कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज को देखे, जो सोचता है ज़रा हट के और लिखता भी है जरा हट के| अपने राजकम्लिया तडकों से अच्छे-अच्छों की खाट खड़ी करने वाला और तथाकथित श्रद्धेय लेखकों से पंगे लेने में माहिर ये रॉयल लोटस आजकल न जाने कहाँ गुम सा हो गया है| कमाल की बात तो ये है कि लंबी-चौड़ी फैन फालोइंग वाले इस धुरंधर लेखक के फॉलोवर भी इन्हें ढूँढने की जेहमत नहीं उठा रहे हैं| इसे कहते हैं मौकापरस्त और उगते सूरज को सलाम करने वाले|

अब चाहे कोई इस बात को माने या न माने पर सच तो यही है कि जागरण जंक्शन पर रौनक थी तो अपने इसी रॉयल लोटस की वजह से| अपने राजकम्लिया तडकों से युक्त व्यंग्य से पूरे मंच को गुदगुदाने में माहिर राजू भाई खलबली सी मचाये रहते थे| लेख और लेखक दोनों का पोस्टमार्टम करने वाले इनके तीखे व्यंग्य बाणों का शिकार इस मंच के कई तथाकथित बड़े-२ श्रद्धेय लेखक-लेखिकाएं और कई सेलेब्रिटीज भी हो चुके हैं| युवा और सुन्दर लेखिकाओं पर ये जितने मेहरबान रहते हैं उतने ही……….पर भी रहते हैं| सन्नी लियोन के हुस्न के मुरीद और शर्लिन चोपडा और पूनम पांडे जैसी सी-ग्रेड की छोकरियों पर भी कभी-२ करम फरमाने वाले अपने राजू भाई आजकल कहीं चुप जा बैठे हैं तो भी बहुत से लोग राहत की सांस भी नहीं ले पा रहे हैं कि कहीं ये तूफ़ान से पहले की ख़ामोशी तो नहीं| इस मंच पर बहुत से लेख फीचर्ड होते हैं, टॉप ब्लॉग में जगह पाते हैं, सप्ताह का सर्वश्रेष्ठ लेख बनते हैं और अक्सर बरसात के सीजन में पुरस्कार भी पाते हैं| लेकिन अपने राजकमल भाई के लेख इनमें से किसी भी कैटेगरी में आने या न आने के बावजूद भी सबकी नजरों में चढ़े रहते हैं|

अब आप सोच रहे होंगे कि मैं क्यों इनका इतना गुण-गान कर रहा हूँ तो अपन भी सीधे-सीधे और साफ़-२ बोलने में यकीन रखते हैं| जब अपन शुरू-२ में इस मंच पे आये तो देखा यहाँ तो जबरदस्त खुजली का आलम छाया है| जितने इस मंच के घगाड गुरु थे सबने हिट होने का हमें यही फॉर्मूला बताया कि जितना हो सके घुस-२ के लोगों के खुजली करो तभी वो तुम्हें भी खुजाएंगे वरना तुम्हारी हालत भी उस लेखक के जैसी हो जायगी जिसके पन्द्रह लेखों पर सिर्फ तीन कमेन्ट उसकी माली हालत को बयान करते दीखते हैं| और फीचर्ड, टॉप ब्लॉग या सप्ताह का सर्वश्रेष्ठ लेख तो तुम्हारे लिए सपने की बात ही होगी| तो महाराज हमने भी शुरू-शुरू में इस फॉर्मूले पर अमल करके देखा और कुछ हद तक सफलता भी पाई लेकिन जल्दी ही समझ आ गया कि इस खुजाने की प्रक्रिया में जल्दी ही सारे नाखून घिस जाएंगे और अगर नाखून घिस गए तो बड़ी दिक्कत हो जायगी क्योंकि जबकि अभी तो सिर पर बाल भी पूरे हैं| तो हमें चाहिए था हिट रहने का लौंग लास्टिंग फार्मूला|

इस बीच हमारी नजर पडी कुछ राजकम्लिया लेखों और उन पर प्रतिक्रियाओं की लंबी कतार पर और हम तुरंत समझ गए कि यही है हमारा हमदर्द का टॉनिक सिंकारा| इन भाई साहब से दोस्ती भिड़ा ली तो इनकी कृपादृष्टि के सहारे हम भी छोटे-मोटे लेखक तो बन ही सकते हैं| बस हमने भी सुंदरियों के प्रति इनका विशेष लगाव देखते हुए सानिया मिर्जा के ऊपर लिखना शरू किया और तुरंत ही इनकी नजरों में चढ गए| बहुत जल्दी ही राजकमल भाई ने हमें ‘जुबली कुमार’ का खिताब भी दे दिया और अपनी तो निकल पडी| राजकमल तो अपनी राजकम्लिया हरकतों से जेजे की नजरों में चढ़े हुए ही थे तो इनके साथ रहने के कारण कभी-कभार हमपे भी जेजे की नजरें इनायत होने लगीं और हमारे लेख भी फीचर्ड होने लगे, बल्कि यहाँ तक कि जल्दी ही सप्ताह का ब्लॉगर बनने का मौका भी मिल गया|

हमारे लेखक के तौर पर स्थापित होने (जैसा कि हमें लगता है) की प्रक्रिया के दौरान हमारी मुलाक़ात शाही जी से भी हुई और हम समझ गए कि यही हमारे गुरूजी हैं| शाही जी के ज्ञानी जी और गुरुभाई इंदरजीत प्रा के साथ जुगलबंदी वाले लेखों से हमें जल्दी ही समझ आ गया कि कैसे लेखक अपनी तमाम रातें खराब …..म्मेरा मतलब कामयाब करते हैं|

इस बीच लगातार हिट फ़िल्में…ओह…मतलब लेख लिखते-२ और फीचर्ड होते-२ मन उबने सा लगा तो हमने सोचा कि कुछ समय के लिए अपने इस तथाकथित लेखकीय जीवन से संन्यास ले लिया जाय (बड़े लेखक अक्सर ऐसा ही करते हैं)| सो हमने भी ऐसा ही किया और कुछ समय के लिए जेजे से संन्यास लेकर फेसबुक पर अपना दिमाग खराब कर सुकून पाने लगे| लेकिन वो कहावत तो आपने सुनी ही नहीं होगी (क्योंकि होती ही नहीं है) कि गली का कुत्ता कितनी भी दूर ले जाकर छोड़ दो, अपने खम्बे सूंघता हुआ फिर वहीं लौट आता है| तो….हम भी…मतलब जैसे कि सभी लौट आते हैं….लौट आये अपनी गली में वापस|

लेकिन लौटकर आये तो देखा कि बहुत से धुरंधर लेखक इस मंच से गायब हो चुके हैं और नई-२ प्रतिभाएं अपने लेखकीय कौशल से धूम मचा रही हैं (हालांकि कुछ पुराने खुर्रांट भी मजबूती से अपनी जगह बनाए हुए थे)| अब फिर से इस मंच पर नए सिरे से अपनी फड़ लगाने की कोशिशें जारी हैं लेकिन अब तो पहले से भी मुश्किल लग रहा है| इस बीच अपना दबंग लेखकों वाला ‘खामखाँ गैंग’ भी बिखर गया है तो ऐसे में न तो किसी को खुजाने की इच्छा होती है और न ही खुद को अब पहले जैसी खुजली होती है| हालांकि इस बीच में कुछ फीचर्ड रचनाओं के साथ सप्ताह का ब्लॉगर बनने का फिर से मौका मिला पर वो सबसे पहले जुबली कुमार कहकर खुजाने वाला कांतिलाल गोडबोले कहीं नहीं दीखता|

हालांकि मेरे पास रॉयल लोटस का वो विलक्षण फोन नंबर 9876543210 भी है लेकिन उसे डॉयल करने वाला फोन अभी अंडर कंस्ट्रक्शन है और 2015 तक मार्केट में आ जाएगा| लेकिन मुझे पूरी उम्मीद है कि राजकमल अपने मोहल्ले में दबदबा बनाती नई ब्रीड पर पैनी नजर जरूर रखे हुए होंगे, और जल्दी ही मुझे आनंद फिल्म में राजेश खन्ना के फेमस डायलॉग ‘बाबू मोशाय’ की तर्ज पर जेजे फिल्म के राजकमल का फेमस डायलॉग ‘जुबली भाई’ जल्दी ही सुनाई देगा|

क्यों, ठीक है न राजू भाई….?

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