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संजय दत्त को सजा या माफी ?

अंगार
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पिछले दिनों मीडिया में इस बात पर काफी बहस हुई है कि संजय दत्त की सजा माफ़ कर देनी चाहिए या नहीं| बहुत से बुद्धिजीवियों लोगों ने इस पर अपनी राय दी और अभी तक दे रहे हैं| लेकिन वे लोग चुप हैं जिनकी राय कोई मायने रखती है, यानी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या फिर संसद में बैठे प्रभावशाली लोग| वैसे तो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की भी राय मायने नहीं रखती क्योंकि इस देश में होता वही है जो सोनिया गांधी चाहती है| हमारे न्यायाधीश और अदालत स्वयं पर बहुत गर्व महसूस कर रहे होंगे की उन्होंने एक सेलेब्रिटी को भी नहीं बख्शा| शायद जज की कुर्सी पर बैठकर इनमें न्याय की वही क्षमता आ जाती होगी जो कि विक्रमादित्य के सिंहासन पर बैठकर उस गडरिये के भीतर आ जाती थी, वरना तो जज की कुर्सी छोड़ने के बाद ये जस्टिस काटजू जैसे ही हैं|

बेशक संजय दत्त ने अपराध किया है लेकिन ये बात सभी जानते है कि संजय दत्त एक पेशेवर अपराधी नहीं है और न ही उसकी पृष्ठभूमि ऐसी है| एक मानवमात्र होने के नाते उससे भूल तो हुई है और उसकी सजा भी उसे मिली है| ठीक वैसे ही जैसे कि एक आम युवक कभी-२ जवानी की नादानी में अवैध हथियार रखकर स्वयम को बहुत बड़ा दादा समझकर अकड महसूस करता है| आज भी देश में कितने ही लोग जाने-अनजाने में अपने घर में अवैध हथियार लिए बैठे होंगे| संजय दत्त से कहीं बड़े मुजरिम जिनपर न जाने कितने ही आपराधिक मामले चल रहे हैं, जो पेशेवर अपराधी हैं, खुलेआम घूम रहे हैं, इनका हमारी अदालतें कुछ नहीं कर पातीं| ह्त्या, बलात्कार, दंगा करवाने जैसे अपराधों के बहुत से आरोपी तो मंत्री तक बन जाते हैं| 1984 के दंगों और सिखों की ह्त्या के आरोपियों को तो कोर्ट क्लीन चिट दे देती है, तब कहा जाता है की क़ानून तो अँधा होता है, उसे सबूत चाहिए| लेकिन संजय दत्त, सलमान खान, सैफ अली खान जैसे सेलेब्रिटीज के मामले में इसी न्याय की तीनों आँखे चौड़ी हो जाती हैं| अगर वाकई में क़ानून अँधा होता है और उसे सबूत चाहिए तो संजय दत्त के मामले में सबूत कहाँ थे? गौरतलब है की संजय दत्त के पास से कोई हथियार बरामद नहीं हुए थे, केवल संजय दत्त के कन्फैशन के आधार पर ही उसे इतनी कड़ी सजा दे दी गई, जबकि सबूत पहले ही नष्ट किये जा चुके थे|

ऐसा ही हाल कुछ सितारों के काले हिरणों के शिकार वाले मामले का भी है| इस बात को सभी जानते हैं कि आज भी वन विभाग के गेस्ट/रेस्ट हाउस प्रभावशाली लोगों के ऐशोआराम, तफरीह, शिकार, शराब पार्टियों इत्यादि के काम आते हैं और वन विभाग के लोग ही इन्हें करवाते हैं| लेकिन सलमान-सैफ जैसे सितारे जाने-अनजाने में एक-आध शिकार कर बैठे तो हमारी न्याय-प्रणाली सतर्क और सख्त हो गई| गलती की सजा जरूर मिलनी चाहिए लेकिन सिर्फ सेलब्रिटीज होने के नाते ही किसी को इतनी सख्त सजा क्यों? क्योंकि इससे चर्चा मिलेगी, या क़ानून की वाह-वाही होगी? सजा मिलनी चाहिए लेकिन इस बात को भी मद्देनजर रखना चाहिए की ये कोई पेशेवर अपराधी नहीं हैं, इनसे भी आम लोगों की ही तरह अपराध हो गए हैं|

क़ानून व्यवस्था और सजा संभवतः इसलिए हैं कि अपराधी को सुधारा जाय और शायद संजय दत्त को पहले ही उसके किए की पर्याप्त सजा मिल चुकी है| अब संजय दत्त को क़ानून और न्याय के नाम पर एक बार फिर से इस सजा का कोई औचित्य नहीं है|

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